क्यों लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया?

लोहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की कांग्रेस पार्टी में मजबूत पकड़ थी. कांग्रेस पार्टी के पकड़ के मामले में उनका कोई सानी नहीं था. वो बॉम्बे प्रेसीडेंसी से आते थे. उन्हें पार्टी का फंड रेंजर कहा जाता था. दूसरी तरफ जवाहरलाल नेहरू लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे.

आज देश में एक वर्ग ऐसा भी है. जो कहता है कि आज सरदार पटेल देश के प्रधानमंत्री होते. तो स्थिती कुछ और होती, ये अलग बात है कि सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन भी जाते तब भी वो आजादी के महेज तीन साल तक अपने पद पर रहे पातें क्योंकि 1950 में दुर्भाग्यवश से उनका निधन हो गया लेकिन क्या कभी सरदार पटेल के लिए प्रधानमंत्री बनने के हालात थे. क्या वो कभी प्रधानमंत्री बन सकते थे इसका साफ जवाब ये है कि जब तक नेहरू कांग्रेस में है. तब तक ऐसा नहीं हो पाता.


1) कैसे मिला भारत को पहला प्रधानमंत्री

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत काफी कमजोर हो चूकी थी. 1946 में ब्रिटीशों ने कैबिनेट मिशन Plan बनाया. इसके तहत कुछ अंग्रेज अधिकारियों को यह जिम्मेदारी मिली थी कि वो भारत की आज़ादी के लिए भारत के नेताओं से बात करें फैसला ये हुआ भारत में एक आतंरीम सरकार बनेगी अंतरिम सरकार के तौर पर वायसराय की Excutive काउन्सिल बननी थी. जिसका अध्यक्ष अंग्रेज वायसराय को होना था. जबकि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को इस काउन्सिल का Vice President बनना था. आजादी के बाद इसी वाइस प्रेसिडेंट का देश का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था. उस समय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल कलाम आजाद थे कांग्रेस कहीं बड़े नेता जेल में होने के कारण 1940 से वो इस पद पर थे. मौलाना आजाद इस पद को नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन महात्मा गांधी के दबाव के कारण वो इस पद को छोड़ने के लिए तयार हो गये.

और इसके बाद कांग्रेस के अगले अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई जो भारत का पहला प्रधानमंत्री बनता ये तय करने के लिए अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई गई इस बैठक में महात्मा गांधी नेहरू सरदार पटेल आर्चाय कृपलानी राजेंद्र प्रसाद खान अब्दुल खान गफ्फार सहीत कहीं बड़े कांग्रेसी नेता शामिल हुए थे.


महात्मा गांधी पंडित नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे. जवाहरलाल नेहरू एक लोकप्रिय जननेता थे लेकिन कांग्रेस के प्रातिय समिति में उनका समर्थन करने वाले लोग कम थे. 15 में से 12 प्रातिय समितियों ने सरदार पटेल के नाम का समर्थन किया बैठक में पार्टी के महासचिव आर्चाय कृपलानी ने ये कहां बापू ये पंरमपरा रही है. की कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव प्रातिय कांग्रेस कमेटी करती है. और किसी भी प्रातिय कमिटी ने जवाहरलाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तापित नहीं किया है.

15 में से 12 प्रांतिय कमिटी ने सरदार पटेल का और बचें हुए 3 कमिटीयों ने मेरा और पट्टाभि सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया है.

इसका ये साफ मतलब था कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल के पास बहुमत था. वहीं नेहरू का नाम ही प्रस्तावित नहीं किया गया था.

2 महात्मा गांधी के दबाव के कारण आया जवाहरलाल नेहरू का

महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू को भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे. इस एहम बैठक के कुछ दिन पहले गांधी ने मौलाना को लिखा था "अगर मुझ से पूछा जाए तो मैं जवाहरलाल नेहरू को ही प्राथमिकता दूंगा मेरे पास इसकी कहीं वजाएं है."


महात्मा गांधी के इस रूख़ के बावजूद अप्रैल १९४६ में कांग्रेस कार्यसमिति बैठक के चर्चा में भी जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रस्तिपीत नहीं हुआ आखिरकार आर्चाय कृपलानी को कहना पड़ा बापू के भावनाओं का सम्मान करते हुए में जवाहरलाल नेहरू का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए प्रस्ताविक करता हूं.

ये कहते हुए आर्चाय कृपलानी ने एक कागद पर जवाहरलाल नेहरू के नाम को खुद ही प्रस्तावित किया सरदार पटेल गांधी का बहुत सम्मान करते थे और वे उनकी बात को टाल भी नहीं पाएं

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क्यों लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया?

ShriRaj Tripute
Feb 10
2

लोहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की कांग्रेस पार्टी में मजबूत पकड़ थी. कांग्रेस पार्टी के पकड़ के मामले में उनका कोई सानी नहीं था. वो बॉम्बे प्रेसीडेंसी से आते थे. उन्हें पार्टी का फंड रेंजर कहा जाता था. दूसरी तरफ जवाहरलाल नेहरू लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे.

आज देश में एक वर्ग ऐसा भी है. जो कहता है कि आज सरदार पटेल देश के प्रधानमंत्री होते. तो स्थिती कुछ और होती, ये अलग बात है कि सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन भी जाते तब भी वो आजादी के महेज तीन साल तक अपने पद पर रहे पातें क्योंकि 1950 में दुर्भाग्यवश से उनका निधन हो गया लेकिन क्या कभी सरदार पटेल के लिए प्रधानमंत्री बनने के हालात थे. क्या वो कभी प्रधानमंत्री बन सकते थे इसका साफ जवाब ये है कि जब तक नेहरू कांग्रेस में है. तब तक ऐसा नहीं हो पाता.

कैसे मिला भारत को पहला प्रधानमंत्री

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश हुकूमत काफी कमजोर हो चूकी थी. 1946 में ब्रिटीशों ने कैबिनेट मिशन Plan बनाया. इसके तहत कुछ अंग्रेज अधिकारियों को यह जिम्मेदारी मिली थी कि वो भारत की आज़ादी के लिए भारत के नेताओं से बात करें फैसला ये हुआ भारत में एक आतंरीम सरकार बनेगी अंतरिम सरकार के तौर पर वायसराय की Excutive काउन्सिल बननी थी. जिसका अध्यक्ष अंग्रेज वायसराय को होना था. जबकि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को इस काउन्सिल का Vice President बनना था. आजादी के बाद इसी वाइस प्रेसिडेंट का देश का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था. उस समय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल कलाम आजाद थे कांग्रेस कहीं बड़े नेता जेल में होने के कारण 1940 से वो इस पद पर थे. मौलाना आजाद इस पद को नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन महात्मा गांधी के दबाव के कारण वो इस पद को छोड़ने के लिए तयार हो गये.

और इसके बाद कांग्रेस के अगले अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई जो भारत का पहला प्रधानमंत्री बनता ये तय करने के लिए अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई गई इस बैठक में महात्मा गांधी नेहरू सरदार पटेल आर्चाय कृपलानी राजेंद्र प्रसाद खान अब्दुल खान गफ्फार सहीत कहीं बड़े कांग्रेसी नेता शामिल हुए थे.

महात्मा गांधी पंडित नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे. जवाहरलाल नेहरू एक लोकप्रिय जननेता थे लेकिन कांग्रेस के प्रातिय समिति में उनका समर्थन करने वाले लोग कम थे. 15 में से 12 प्रातिय समितियों ने सरदार पटेल के नाम का समर्थन किया बैठक में पार्टी के महासचिव आर्चाय कृपलानी ने ये कहां बापू ये पंरमपरा रही है. की कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव प्रातिय कांग्रेस कमेटी करती है. और किसी भी प्रातिय कमिटी ने जवाहरलाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तापित नहीं किया है.

15 में से 12 प्रांतिय कमिटी ने सरदार पटेल का और बचें हुए 3 कमिटीयों ने मेरा और पट्टाभि सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया है.

इसका ये साफ मतलब था कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल के पास बहुमत था. वहीं नेहरू का नाम ही प्रस्तावित नहीं किया गया था.

2 महात्मा गांधी के दबाव के कारण आया जवाहरलाल नेहरू का

महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू को भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे. इस एहम बैठक के कुछ दिन पहले गांधी ने मौलाना को लिखा था "अगर मुझ से पूछा जाए तो मैं जवाहरलाल नेहरू को ही प्राथमिकता दूंगा मेरे पास इसकी कहीं वजाएं है."

महात्मा गांधी के इस रूख़ के बावजूद अप्रैल १९४६ में कांग्रेस कार्यसमिति बैठक के चर्चा में भी जवाहरलाल नेहरू का नाम प्रस्तिपीत नहीं हुआ आखिरकार आर्चाय कृपलानी को कहना पड़ा बापू के भावनाओं का सम्मान करते हुए में जवाहरलाल नेहरू का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए प्रस्ताविक करता हूं.

ये कहते हुए आर्चाय कृपलानी ने एक कागद पर जवाहरलाल नेहरू के नाम को खुद ही प्रस्तावित किया सरदार पटेल गांधी का बहुत सम्मान करते थे और वे उनकी बात को टाल भी नहीं पाएं

3 गांधी ने नेहरू को ही क्यों आगे बढ़ाया

उस समय पार्टी के बाकी सदस्यों के मुकाबले नेहरू ज्यादा आधुनिक विचारों वाले थे. गांधी को लगता था की नेहरू देश को उधार विचारों के ओर ले जाएंगे महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को क्यों नहीं चुना इस सवाल का जवाब गांधी ने खुद उस समय के वरिष्ठ पत्रकार दुर्गादास को दिया था.

महात्मा गांधी ने उन्हें बताया की जब जवाहरलाल नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष ब्रिटिश हुकूमत से बेहतर तरीके से समझौता व्यवहार्ता कर सकते थे


इसके अलावा महात्मा गांधी को ऐसा लगता था जवाहरलाल नेहरू आतंराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व सरदार पटेल से ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाएंगे

4) सरदार वल्लभ भाई पटेल नी भी मान लिया था नेहरू को नेता

इन ऐतिहासिक घटना क्रमों पर विचार करने के बाद ये बात साफ तौर पर समझी जा सकती है. की नेहरू के रहते सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे.

सरदार पटेल की कांग्रेस संगठन पर मजबुर पकड़ थी लेकिन जन नेता नेहरू ही थे. इस बात को सरदार पटेल ने भी स्विकार कर लिया था.

2 अक्टूबर 1950 को इंदौर में एक महिला केंद्र का उद्घाटन करने गए सरदार पटेल ने अपने भाषण में कहा अब जब महात्मा हमारे बीच नहीं हैं. इसलिए नेहरू ही हमारे नेता हैं.

गांधी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था और उन्होंने उसकी घोषणा भी की थी. अब ये बापू के सिपाहियों का कर्तव्य है. के वे उनके निर्देश का पालन करें और मैं उनका एक गैर वफादार सिपाही नहीं हूं

लेखक रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक "भारत गांधी के बाद" में कहते हैं. गांधी अपने जिते-जी हिंदू और मुसलमानों में सामंजस्य स्थापित नही कर पाएं लेकिन उनके मृत्यु ने नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच के मतभेदों को दूर जरूर कर दिया ये एक नये और एक बड़े अस्थिर देश के नेताओं के बीच की सुल्हा थी जो उस समय काफी महत्वपूर्ण थी.

लेखक :- Shriraj Tripute

shriraajtripute@gmail.com

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